डायरेक्टर: कायोज ईरानी
कास्ट: पृथ्वीराज सुकुमारन, काजोल, इब्राहिम अली खान
Sarzameen Movie Review: ‘सरज़मीन’ उन फिल्मों की कतार में शामिल है, जो ज़्यादा बोलती नहीं, लेकिन फिर भी अपने पीछे एक भारी-सी खामोशी छोड़ जाती हैं। यह फिल्म नारेबाज़ी या दिखावे वाली देशभक्ति नहीं दिखाती, बल्कि उस सच्चाई की बात करती है, जो अक्सर पोस्टर से गायब रहती है।
विजय मेनन और उसका बोझिल संसार
फिल्म की शुरुआत होती है मेजर विजय मेनन से — एक सीनियर आर्मी अफसर, जो कश्मीर की जमीनी हकीकत से रोज़ दो-चार हो रहा है। उसकी आंखें थकी हुई हैं और चेहरा उतना ही शांत है, जितना एक तूफान से पहले का आसमान।
हरमन की उलझी पहचान
कहानी में मोड़ आता है जब विजय की मुलाकात होती है एक नौजवान से, हरमन नाम का लड़का। उसकी पहचान पर परदा है, और उसके अतीत में कुछ ऐसा है जो सीधा सामने नहीं आता। यहीं से फिल्म रहस्य और मनोभावों के रास्ते पर चलती है।
काजोल की खामोश ताकत
कहानी में जो किरदार सबसे ज़्यादा याद रह जाता है, वह है मेहर। इस भूमिका में काजोल ने ज़ोर से कुछ नहीं कहा, लेकिन उनकी आंखों और चुप्पियों में बहुत कुछ था। उनके अतीत में कोई घाव था, जो अब नासूर बन चुका है, मगर उन्होंने उस दर्द को अपने चेहरे पर नहीं आने दिया।
धीमी रफ्तार, गहरा असर
फिल्म तेज़ नहीं भागती। इसका हर सीन थोड़ा रुककर चलता है — जैसे किसी बूढ़े दादा के हाथ से लिखी चिट्ठी को ध्यान से पढ़ा जाए। कहानी उतनी ही धीमी है, जितनी ज़रूरी है, और उतनी ही असली भी।
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कलाकारों का अभिनय
पृथ्वीराज ने मेनन के किरदार में गहराई और थकान दोनों को जिया है। उनका चेहरा बोलता नहीं, लेकिन बहुत कुछ कह जाता है। इब्राहिम अली खान ने कोशिश की है — यह साफ नज़र आता है। और काजोल ने, बिना ज़्यादा संवादों के, अपने किरदार को ज़िंदा कर दिया है।
निर्देशन
कायोज ईरानी ने फिल्म को सजाया नहीं, बल्कि सीधा-सादा रखा है। कैमरा जहां रुकना चाहिए, वहां रुकता है। कश्मीर की खूबसूरती को भी दिखाया, लेकिन वो दिखावा नहीं बना। बैकग्राउंड म्यूज़िक बस इतना है कि भावों को बढ़ा सके — चीखता नहीं।
नतीजा — देखिए या नहीं
अगर आप उन दर्शकों में से हैं जो सिर्फ मसालेदार ट्विस्ट या तेज़-तर्रार एडिटिंग से खुश होते हैं, तो शायद यह फिल्म आपके लिए नहीं। लेकिन अगर आप एक सच्ची कहानी, असली भावनाएं और सोचने पर मजबूर कर देने वाला सिनेमा पसंद करते हैं, तो ‘सरज़मीन’ आपको ज़रूर देखनी चाहिए।
‘सरज़मीन’ सिर्फ एक फौजी की कहानी नहीं है। यह एक इंसान की कहानी है — जो वर्दी के पीछे एक दिल लेकर जी रहा है। फिल्म खत्म होने के बाद भी उसका असर कुछ देर तक बना रहता है। और शायद यही किसी भी अच्छी फिल्म की सबसे बड़ी कामयाबी होती है।